मैं ख़्वाब सहलाता रहा
काव्य साहित्य | कविता सन्तोष कुमार प्रसाद14 Oct 2016
मै ख़्वाब सहलाता रहा
सपनों की उड़ान भरने की ख़ातिर
जागा तो पैरों की ज़मीं ग़ायब मिली
ग़ायब हुई या चूहों ने कतरन की
कतरन की या काट खाया
बोझिल मन थका तन सोचता रहा
सपने पंख फैला उड़ चले
अँधेरों से सर टकराया, सपने चूर हुए
मैं बातें करता था, सपनों की
बातें बुनता था सपनों की
जब सपने चूर हुए
मन आहत हुआ, पथ भ्रमित हुआ
प्रकाश ढूँढता रहा, पथ पर जाने को
अँधेरों ने जीवन में दस्तक दी
पर मैं न हारूँगा,
जीवन पथ पर बढ़ता जाऊँगा
परवाह न करूँगा अँधेरों की
मैं ख़्वाब सहलाता रहूँगा
उड़ान भरूँगा, हुंकार भरूँगा
मैं फ़र्श से अर्श तक का सफ़र करूँगा
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