मैं मानव हूँ
काव्य साहित्य | कविता दिनेश शर्मा15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
अड़ा हूँ
बड़ा हूँ
खड़ा हूँ
मैं मानव हूँ।
नहीं झुकूँगा
नहीं रुकूँगा
ज़िंदा रहने का
हर प्रयास करूँगा
मैं मानव हूँ ।
पथ पर समस्त हूँ
बेशक पथभ्रष्ट हूँ
फिर भी
जीव श्रेष्ठ हूँ
मैं मानव हूँ।
हाँ पतित हूँ
दिग् भ्रमित हूँ
पर
नहीं लज्जित हूँ
मैं मानव हूँ।
विचारों से भरपूर हूँ
मद में चूर हूँ
लेकिन
मंज़िल से दूर हूँ
मैं मानव हूँ।
कर्तव्य से विमुख हूँ
तलाशता सुख हूँ
विनाश का मुख हूँ
क्या मैं मानव हूँ ?
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