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मैं पर्दा था

 मैं पर्दा था  
जब तक नज़रों का
हुआ जब से कपड़े का
ख़ुद बेपर्दा हो गया।


आँखें मूद लेता हूँ
देख सलवटें चादर की
फिर किसी  यक़ीन का
पल में क़त्ल हो गया।


स्तब्ध हूँ देखकर
लगती बोली ईमान की
फिर किसी अरमान का
सपना चूर हो गया।


विचलित हूँ देख
जिसे ज़िम्मा बचाने का
कफ़न का भी, आड़ में मेरी
सौदा बिन मरे हो गया।


हैरां हूँ देख
बदलते रूप इंसान  के
लूटता रहा जो महलों को  
वो चौकीदार हो गया।

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