मैं शूर
काव्य साहित्य | कविता कहफ़ रहमानी 'विभाकर'9 Mar 2014
मैं शूर
इस वैषम्य-जगत का
अस्त्र-शस्त्र संवेदना।
जब कभी भी संहार होता
अपलक जूझता
कविताएँ रचता हूँ।
आवश्यक नहीं उग्रता
इस समय कोमल-कराल होना
समाधान पाना बुद्धिमत्ता है।
न्याय को स्थान
अन्याय पर संघात
ये हस्त अमिय-विष धार हैं।
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