माली बाग़ के रहना सावधान
काव्य साहित्य | कविता कुलदीप पाण्डेय 'आजाद'15 Feb 2020
माली बाग़ के रहना सावधान॥
पैर डिगें न तेरे आँधी या तूफ़ान।
माली बाग़ के रहना सावधान॥
कौन सुमन हैं कौन कंटक बाग़ के,
छिप-छिप के रहते बाग़ में।
हर पुष्प में जो भरते रहते भ्रांति,
मिटते रहते बाग़ की जो शांति।
निकाल दें भ्रांतियों को ऐसी कर ले आन।
माली बाग़ के रहना सावधान॥
राहों में बिछें हों अंगारे गर,
यदि रोक रहा हो उपवन गाकर।
बढ़ना नित अविरत तुम धैर्यवान।
माली बाग़ के रहना सावधान॥
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