मन
काव्य साहित्य | कविता भुवन पांडे27 Sep 2017
विचारों के मंथन से
नहीं निकल पाया कोई मोती
बहुत देर दौड़ाये सोच के अश्व
पर राह की धूल ही मिली
ना मिली कोई मंज़िल
थक हार कर ज्यों ही बैठा मस्तिष्क
भागने लगा मन दूर सुदूर कहीं
सोचा ढूँढ़ लूँ कोई ठिकाना वहीं
मन पर लगा उड़ चला फिर कहीं...
बहुत कोशिश की मन को
क़ैद करने की
पर हर बार 'सोच' पिंजरा बन रह गई
और मन आकाश हो गया...
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