मन होता है
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया17 Jun 2007
न जाने आज कल
क्यूँ मन होता है कि
नदिया की लहरों की तरह
तेरी बाँहों में मचल जाऊँ,
तेरे सीने के जंगल में,
जंगली फूलों की
ख़ुशबू बन के बस जाऊँ,
तेरे होठों पर मचलता
जो सागर मैंने देखा है,
उसमें से एक ओक भरूँ -
और पी जाऊँ,
तेरी नज़रों से बरसती
र की बारिश में,
अपने तन मन को भिगोऊँ,
कभी कभी मुझे लगता है कि
मैं "एक छोटी सी नटखट बूँद" हूँ,
और तू एक
"शान्त ठहरी हुई सी झील" है।
अगर तू इज़ाजत दे तो........
तो बता, क्या मैं तुझमें खो जाऊँ?
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