मानव अस्तित्व
काव्य साहित्य | कविता सतीश सिंह15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
कोरोना ने ज़िंदगी के
कैनवास पर रंग दी है
ख़ौफ़ की चित्रकारी
घर बन गये हैं पिंजरे
विकसित होने के सारे दावे
धाराशायी हो गये हैं
एक वायरस ने
बता दी है औक़ात
पर, पेड़, पहाड़, नदी
और हवा मुस्करा रहे हैं
चहकने लगी हैं चिड़ियाएँ
विहँसने लगे हैं फूल-पौधे
नीला हो गया है आकाश
निर्मल हो गई है
नदी की धारा भी
आत्मसात करने होंगे
कोरोना के सबक़
त्यागने होंगे लालची प्रवृत्ति
समझने होंगे हदों को
तभी बच पायेगा
मानव अस्तित्व
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