अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मंच से झरता इंक़लाब

शहर के सबसे बड़े उद्योगपति के उद्योग समूह की सबसे मोटी कमाई करने वाली फैक्ट्री की स्थापना की पच्चीसवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है। बहुत से उत्सवों का आयोजन किया गया है। एक भव्य कवि-सम्मेलन भी आयोजित किया गया है। देश के बड़े-बड़े नामी कवि बुलाए गये हैं। सुना है उनमें से कई ने तो एक रात के लिए एक-एक लाख रुपये लिये हैं। सभी के रुकने का इन्तज़ाम मंहगे शानदार होटलों में किया गया है। आयोजन-स्थल भी एक बड़े होटल के वातानुकूलित हाल में है।

शहर के तमाम नेताओं, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों, बड़े-बड़े व्यवसायियों को कार्यक्रम के पास जारी किए गये हैं। सार्वजनिक प्रवेश की अनुमति नहीं है। बड़े-बड़े अख़बारों के पत्रकार आये हुए हैं। एक स्थानीय समाचार-पत्र का सम्पादक होने के नाते मुझे भी निमन्त्रण मिला है।

आयोजन-स्थल पर पहुँचा तो पता चला सभी कवि किसी विशिष्ट कार्य हेतु एक कमरे में एकत्रित हैं। मुझे कई स्वनामधन्य कवियों से दुआ-सलाम की अभिलाषा है, सो वहीं पहुँच गया हूँ। शैम्पेन की बोतलें खुली हुई हैं, तले हुए काजू की प्लेटें सजी हुई हैं। कविगण काव्य-पाठ के लिये आवश्यक ऊर्जा का संचय करने में व्यस्त हैं। वातावरण अपने अनुकूल न पाकर बाहर आ गया हूँ।

कवि-सम्मेलन में सभी कवियों ने एक से बढ़कर एक क्रान्तिकारी कवितायें प्रस्तुत की हैं। ग़रीबी पर, भुखमरी पर, बेरोज़गारी पर, भ्रष्टाचार पर, व्यभिचार पर, किसानों की दुर्दशा पर रची गई इंक़लाबी कविताओं से हाल रह रहकर तालियों से गूँज रहा है। वाह-वाह, फिर से पढ़िये की आवाज़ें गूँज रही हैं। इंक़लाब मंच से झर-झर झर रहा है। नौ बजे शुरू हुआ कवि-सम्मेलन रात एक बजे तक चला। तत्पश्चात सभी कवियों और मेहमानों ने छककर नान-वेज का लुत्फ़ उठाया।

सुबह के सभी अख़बार कवि-सम्मेलन की भूरि-भूरि प्रशंसा से भरे पड़े हैं। साथ ही आयोजनकर्ता उद्योगपति की भी, जिनकी ओर से सभी अख़बारों को पूरे पृष्ठ का विज्ञापन देकर उपकृत किया गया है... ग़रीबों के लिए उनकी फ़ैक्ट्री में बनने वाले गुटखे का विज्ञापन। फ़ैक्ट्री में मेरे सूत्रों ने मुझे बताया है कि इस आयोजन का ख़र्च 'कारपोरेट सामाजिक दायित्व' की मद में किया गया है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

गीत-नवगीत

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं