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मंगते से क्या माँगना 

मुझे किसी मित्र द्वारा सुनाया हुआ यह क़िस्सा रोचक होने के साथ ही प्रेरक भी लगता है। एक बार शहंशाह अकबर जंगल में घुड़सवारी करते हुए बहुत दूर निकल गए और अपने मातहतों से बिछुड़ गए। धीरे-धीरे अँधेरा छाने लगा और फिर रात हो गई। उस अँधियारी रात में शहंशाह अकबर को कुछ दूर एक रोशनी की किरण नज़र आई तो वे उस तरफ़ चल पड़े। जब पास पहुँचे तो उन्हें एक झोपड़ी के दरवाज़े से वह रोशनी आते दिखी। उन्होंने झोपड़ी में प्रवेश किया तो उन्हें सामने एक अधेड़ आदमी चूल्हा फूँकता नज़र आया। शहंशाह अकबर ने खाँसते हुए उस अधेड़ इंसान का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा तो उसने पूछा, "तुम कौन हो?"

शहंशाह अकबर समझ गए कि इस जंगल में रहने वाले आदमी को उनकी पोशाक देखकर भी पता नहीं चला कि वे  शहंशाह हैं तो उन्होंने भी अपना परिचय देते हुए कहा, “दिल्ली से आया हूँ। रास्ता भटक गया हूँ और भूखा हूँ।”

उस आदमी ने  शहंशाह अकबर को भोजन कराया और फिर सोने के लिए एक मोटा कम्बल दिया। सुबह हुई तो शहंशाह अकबर के सैनिक उन्हें खोजते हुए उस झोपड़े तक पहुँच गए। वहाँ से चलते वक़्त  शहंशाह अकबर ने उस आदमी से कहा, "मेरा नाम शहंशाह अकबर है। कभी दिल्ली आना और मुझसे ज़रूर मिलना। "

वर्षों बाद वह जंगली आदमी दिल्ली गया तो उसने लोगों से बताया कि उसे 'शहंशाह अकबर' से मिलना है। लोगों ने उसे क़िले का रास्ता बताया तो वह क़िले के प्रमुख द्वार पर पहुँचा। उसने वहाँ द्वारपाल को  शहंशाह अकबर से मिलने की बात कही तो वह द्वारपाल  
शहंशाह अकबर के पास गया और उनको उस जंगली आदमी के उनसे मिलने की इच्छा के बारे में बताया। शहंशाह अकबर ख़ुश होते हुए बोले, "उस नेक आदमी को मैंने ही दिल्ली आने के लिए कहा था; मैं वर्षों से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। "

जिस वक़्त वह आदमी  शहंशाह अकबर के पास पहुँचा, वे नमाज़ अता कर रहे थे उस आदमी ने अपने जीवन में तब तक किसी को नमाज़ अता करते नहीं देखा था। ख़ैर, जैसे ही  शहंशाह ने नमाज़ पूरी की, उन्होंने उस आदमी के लिए शाही खाने-पीने का सामान मँगवाया। भोजन करते हुए उस आदमी ने  शहंशाह से पूछा कि वह जब अंदर आया तो वे क्या कर रहे थे?  शहंशाह समझ गए कि इसे नमाज़ के बारे मालूम नहीं है तो वे ऊपर आसमान की तरफ़ इशारा करते हुए उससे बोले, "मैं ख़ुदा से अपने और अपनी प्रजा के लिए ख़ुशहाली माँग रहा था।"

बहरहाल, जब वह आदमी चलने को उठा तो  शहंशाह ने उससे कहा कि  उसे जो कुछ भी चाहिए, वह उनसे माँग सकता है क्योंकि उसने उस रात उनकी मदद की थी। 

वह जंगली आदमी हँसते हुए बोला, "अकबरा! मंगते से क्या माँगना? जिससे तू माँग रहा था, मैं भी उसीसे माँग लूँगा।"

यह कहकर वह आदमी तेज़ी से शहंशाह अकबर के कक्ष से निकल गया।

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