मँझधार
काव्य साहित्य | कविता सन्तोष कुमार प्रसाद16 Mar 2017
कौन सही है कौन ग़लत
ये मैं नहीं जानता
बस इतना है कि मझधार मे फँसा हूँ
सब लोग सही है अपनी जगह
बस मैं ही ग़लत हूँ
बेकार की जद्दोजहद
उस नाव को खेने का प्रयास है
जिसमें छेद ही छेद हैं
सब की समस्या है
एक दूसरे से गृह युद्ध है
बस सिर्फ़ मैं हूँ
जो उनकी नज़र में नकारा हूँ
सब अपना कर्तव्य निभा रहे
सिर्फ़ मैं आवरण ओढ़े आवारा हूँ
उसकी भी मैंने सुनी, उनकी भी
बस चिंघाड़ती आवाज़ें गूँजती हैं कानों में
क्या नदी और समुन्द्र नहीं मिलते
ये टूटी फूटी नाव कब तक चलेगी
कब तक मैं खेता रहूँगा,
आशा की किरणों की तलाश में।
लोग तुलनात्मक हो जाते हैं,
अपने ही अस्तित्व से खिलवाड़ करते हैं
इस परिपाटी को मैं भेद तो नहीं सकता
बस यही आशा है, समय सब ठीक करे
लोग मुझे और नीयत को समझें
और मेरी टूटी फूटी नाव के छेद भर जायें
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं