मनमत्त गयंद
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अविनाश ब्यौहार1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
हैं अन्याय के
बादल छाए
सूरज निकलेगा।
छल-फ़रेब, उठाईगिरी,
उठा-पटक है।
नीति-नियम वाले
आँखों में रहे खटक हैं॥
गर्वीला-
हिम का पर्वत
इक दिन पिघलेगा।
गिरहकटी को यहाँ लोग
बढ़ावा हैं देते।
औ सरकारी अफ़सर को
चढ़ावा हैं देते॥
ये मनमत्त गयंद
झाड़-झंखाड़ कुचलेगा।
राजनीति मानो शकुनि का
पर्याय हो गई।
साफ-सुथरी पगडंडी पर
शूल बो गई॥
कुर्सी पर बैठा बाबू
एकदम से उछलेगा।
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