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मौसम बदला सा

बदला बदला से ये मौसम क्यूँ है
बाद मुद्दत के आँखों में नमी सी क्यूँ है

 

शाख पर सोए परिंदों ने फिर आँखें खोलीं
किसी जानी हुई आहट से शिक़ायत क्यूँ है

 

काश होता कभी ऐसा जो दिल ने चाहा है
हूक दिल में औ सीने में जलन सी क्यूँ है

 

लाख बनाई मगर फिर भी ना बन पाई जो
बात बेचैन औ जज़्बात इतने बेरहम क्यूँ है

 

कितना चाहा था कि ख़ुद से भी कभी पूछेंगे
हर निगाह में बसते वही सवाल से क्यूँ है

 

यादों की रहगुज़र भी अब मुश्क़िल सी लगे है
बेचैन दिल को फिर भी वही, तलाश सी क्यूँ है

 

तकदीर ने ना छाँव दी औऱ सफ़र ही अब कारवां
ज़िंदगी की राह में.. , इतने इम्तेहा क्यूँ हैं

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