मौसम बदला सा
शायरी | ग़ज़ल दीपक नरेश13 Mar 2009
बदला बदला से ये मौसम क्यूँ है
बाद मुद्दत के आँखों में नमी सी क्यूँ है
शाख पर सोए परिंदों ने फिर आँखें खोलीं
किसी जानी हुई आहट से शिक़ायत क्यूँ है
काश होता कभी ऐसा जो दिल ने चाहा है
हूक दिल में औ सीने में जलन सी क्यूँ है
लाख बनाई मगर फिर भी ना बन पाई जो
बात बेचैन औ जज़्बात इतने बेरहम क्यूँ है
कितना चाहा था कि ख़ुद से भी कभी पूछेंगे
हर निगाह में बसते वही सवाल से क्यूँ है
यादों की रहगुज़र भी अब मुश्क़िल सी लगे है
बेचैन दिल को फिर भी वही, तलाश सी क्यूँ है
तकदीर ने ना छाँव दी औऱ सफ़र ही अब कारवां
ज़िंदगी की राह में.. , इतने इम्तेहा क्यूँ हैं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
ग़ज़ल
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं