मौत के मिथक
काव्य साहित्य | कविता सतीश सिंह4 Nov 2017
हमारे मानस
मिथकों से भरे हैं
दशहरे के मिथक तो
बड़े ही रोचक हैं
राम-लीला से लेकर
रावण दहन के मिथक
प्राणवायु की तरह हैं
ऐसे मिथकों में
धर्म की
अधर्म पर जीत होती है
बुराई हार जाती है
अच्छाई से
हर तरफ़, हर पल
तैरती रहती है
जीवन की संगीत लहरियाँ
एलफिंस्टन रोड स्टेशन
के भी मिथक हैं
असमय
काल कवलित होने वाले
22 लोग बन गये हैं
इस मिथक के हिस्से
उनका नाम भी जुड़ गया है
जॉन एलफिंस्टन से
भले ही उम्र 104 साल की है
लेकिन है वह बड़ा उत्सवधर्मी
मौत पर भी गाता है
ख़ुशी के गीत
बाँहों में जकड़कर
लील लेता है लोगों के प्राण
फिर लगाता है
एक ज़ोरदार अट्ठहास
जिसकी अनुगूँज से
काँपने लगती है
सितारों की दुनिया
स्वार्थ के दीप
जल रहे हैं चहुं ओर
विषबेलें बड़ी हो रही हैं
विस्मृति के कुहासे में
छुप गई हैं
अनचाहे लोगों की स्मृतियाँ
उनके क़िस्से
नहीं होते हैं रोचक
उनकी मौत में
नहीं होता है जीवन संगीत
बियावन में खो जाना
उनका नसीब है
वे नायक का किरदार
नहीं निभा पाते हैं
उनके जीवन पर
नहीं खेले जाते हैं
नुक्कड़ नाटक
उनकी जान की क़ीमत
लाख-दो लाख से
ज़्यादा की नहीं होती
कभी-कभी तो
हज़ार-दो हज़ार की
उनके दिल धड़कने का सबब
कभी नहीं जान पाते हैं हम
उनकी मौत के बाद
अकेलेपन की पगडंडी पर
चलना पड़ता है
उनके परिवार को
शून्य में निहारना
उनकी नियति होती है
अश्रुपूर्ण आँखों से
गंगा में प्रवाहित किया गया अस्थिकलश
फिर भी
नहीं रखा गया उनका हिसाब
रेहड़ी वाले, खोमचे वाले
या फिर
नौकरीपेशा लोगों की मौत
इस बार भी
नहीं बन पाई मिथक
अच्छा है
मौत के मिथक
प्राणवायु नहीं होते
नहीं तो
हमारी ज़िंदगी भी
रोज़ हो जाती
कुनैन की तरह कड़वी।
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