मेरा वजूद
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
तुम इस्तेमाल करते हो मैं इस्तेमाल होती हूँ
बिना कुछ सोचे बिना बोले
हर दिन हर पल
घर मे पड़े किसी फ़र्नीचर की तरह
रहती तो घर में हूँ पर क़दर ज़रूरत भर
जब मन हुआ आ गए, मन की बात की
फिर अपने रस्ते,
कोई ताल्लुक़ ना रहा हो जैसे कभी
हम दोनों का
तुम्हारे लिए मेरा वजूद सिर्फ़ इतना सा ही है।
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