मेरे दिल से मिलाए तो कोई
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया18 Jun 2007
मेरी राहों पर चल के देखे कोई
मेरी फैली हुई बाँहों में समाए कोई
मैं मंज़िल पर हो कर भी
बहुत दूर हूँ मंज़िल से
मेरी रास्तों को -
मंज़िलों से मिलाए कोई
यह जो बिखरे हुए से
अल्फ़ाज़ हैं मेरे
इन्हें दिल में अपने समेट के
अब नये अर्थ दे जाए कोई
बहुत थकी और दर्द से
बोझिल हैं मेरी आँखे
अब इन्हें एक पल कि
नींद सुलाए कोई
दर्द कि शिद्दत समझने के लिए
दर्द का एहसास भी ज़रूरी है
अपने दिल को अब
मेरे दिल से मिलाए तो कोई !!
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