मेरी ख़्वाहिश
शायरी | नज़्म महेश पुष्पद15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
ख़ूबियों से इस क़दर
भरपूर हो जाऊँ,
कि सारे जहान में
मशहूर हो जाऊँ।
जानता हूँ बिछड़ जाएँगे,
इक दिन ज़माने वाले,
क्यूँ न इन सब से मैं,
ख़ुद ही दूर हो जाऊँ।
ऐ ख़ुदा अता फ़रमा,
सबको बेतहाशा ख़ुशियाँ,
इसकी ख़ातिर मैं भले,
ग़मों से चूर हो जाऊँ।
ये लाज़मी है लगती रहे,
ठोंकरें भी कभी-कभी,
यूँ न हो कि मैं ज़रा भी,
मग़रूर हो जाऊँ।
मौक़ा-ए-हिजरत में ज़्यादा,
गुफ़्तगू भी ठीक नही,
कहीं यूँ न हो कि रुकने पर,
मैं फिर मजबूर हो जाऊँ।
सीख लूँ मैं सबक़ ज़िन्दगी के,
अच्छे भी,और बुरे भी,
इससे पहले कि किसी के
माँग का सिंदूर हो जाऊँ।
बस एक बार अपने नूर से,
कर दूँ जहान रोशन,
बाद इसके मैं चाहे
फिर बेनूर हो जाऊँ।
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