मेरी यादों में
काव्य साहित्य | कविता अवनीश कुमार गुप्ता15 Feb 2009
मेरी यादों में एक गलियारा है
जिसमें तुम्हारी बेचैनी
तुम्हें कुछ दूर तक भगाकर मेरे पास ले आती है
फिर तुम्हारी तहज़ीब तुम्हें रोककर
मेरे पास चुपचाप बिठा देती है
मेरी यादों में तुम्हारी शरारतें हैं
जिसमें तुमने अपनी बेलगाम हँसी से
मेरी मुस्कुराहटों को दबा रखा है
मेरी यादों में एक सेज है
जिस पर तुम किसी दुल्हन की तरह
इतनी ख़ामोश बैठी हो कि
तुम्हारी धड़कनों की आवाज़
उठती गिरती सुनाई दे रही है
मेरी यादों में जितनी जगह है
सब मैंने तुम्हारे लिये सबसे उधार ले ली है
जिसे चुका पाना अब मेरे बस में नहीं
पर कभी कभी कुछ बादल आकर
तुम्हारी इन तस्वीरों को धुँधलाकर
मुझे परेशान करते रहते हैं
इसलिये कभी कभी लगता है
काश ! तुम मेरी यादों में न रहो
मेरे सामने रहो
हमेशा ...
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