मील का पत्थर
काव्य साहित्य | कविता प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मील के पत्थर से
रहा न गया
रुआँसा था कल तक
आज रो ही पड़ा . . .
एक तू ही अकेली
है ठहरी यहाँ
बाक़ी किसी को
है फ़ुरसत कहाँ . . .
भागे फिरते हैं पागल-से
बस भीड़ में,
जाना किसको, किधर,
ये ख़बर है कहाँ . . .
जो मेरा ही जश्न
न मनाएँगे वो,
पछतावे सिवा
कुछ न पाएँगे वो . . .
मैं तो थक गया
तू ही समझा ज़रा –
"हर लम्हा है मन्ज़िल
अरे, नासमझ,
ये न लौटेगा फिर
इसे ज़ाया न कर!"
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता-चोका
कविता
लघुकथा
कविता - क्षणिका
- अनुभूतियाँ–001 : 'अनुजा’
- अनुभूतियाँ–002 : 'अनुजा’
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 002
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 003
- प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' – 004
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 001
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 005
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 006
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 008
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 009
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 010
- प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 011
सिनेमा चर्चा
कविता-ताँका
हास्य-व्यंग्य कविता
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं