मिलन के संग जुदाई है
काव्य साहित्य | कविता बृजेश कुमार31 Oct 2014
जब क्षितिज पे सूरज ढलता है
दिल दीपक जैसे जलता है
तुम यादों में मुस्काती हो
मन थोड़ा और मचलता है
जब क्षितिज पे सूरज ढलता है
पुरवा मद्धम हो जाती है
चिड़ियों के कोलाहल में
अंतस् की सदा खो जाती है
कुछ व्याकुल सा हो जाता हूँ
जब क्षितिज पे सूरज ढलता है
दिवस रैन हो जाता है
तारों की शीतल छाँव में
सब चैन शुकुं खो जाता है
मिलन के संग जुदाई है
बस इक सन्देश निकलता है
जब क्षितिज पे सूरज ढलता है
दिल दीपक जैसे जलता है
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