मिलन की आस
काव्य साहित्य | कविता सी.आर.राजश्री13 Oct 2007
जिन्दगी तुम्हारे बिन पिया है अधूरी,
लौट आओ तुम, मिटा दो ये दूरी,
भुला दो हमारे बीच के गिले शिकवे,
मन हो गया है मायूस, पथरा गई है आँखें।
याद आते है जब वो मीठे लम्हों के वादे,
की थीं जब हमने हसीन वादियों में मुलाकातें,
तोड़ कर अपने सारे रिश्ते और नाते,
की थी जब तुमने हमसे प्यार भरी बातें।
हो गये क्यों, तुम मुझसे ख़फ़ा,
होकर विमुख हमसे, न कहलाओ बेवफ़ा,
जीवन है चार पल का न गँवाओ ऐसे,
नैन बिछाये बैठे है हम न बर्ताव करो ऐसे।
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