मिलना तेरा-मेरा
काव्य साहित्य | कविता-चोका कमला निखुर्पा1 Oct 2019
धरती मिली
गगन से जब भी
पुलक उठी
क्षितिज हरषाया।
बदली मिली
पहाड़ों के गले से
बरस गई
सावन लहराया।
ओ मेरे मीत!
मिलना तेरा-मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा।
मन क्यों घबराया?
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