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मिस्टर पहेलीराम

 प्यारे बच्चो! इस समय ना तो आप मुझे देख सकते हैं और ना मैं आप पर नज़र रखे हूँ। मैं जानता हूँ कि आप यह कहानी लैपटॉप, कम्प्यूटर, पैड, प्रिन्ट आउट या किसी और तरीक़े से पढ़ रहे हैं। आपको देखे बिना भी मैं एक बात बड़े विश्वास के साथ कह सकता हूँ आपके बारे में, और वह बात यह है कि आपका कोई-न-कोई ख़ास दोस्त या सहेली ज़रूर है। बल्कि, शायद आपके कई ख़ास दोस्त या सहेलियाँ हैं। जिसकी कोई बात हमें अच्छी लगती है, हम उसे अपना दोस्त या सहेली बना लेते हैं। अगर आपके दोस्तों, सहेलियों की संख्या दस, पंद्रह, या उससे भी ज़्यादा है, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपकी बहुत सारी बातें उन्हें अच्छी लगती हैं। हाँ, अगर आप मिस्टर पहेलीराम जैसे हों, तो बात दूसरी है। 

जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, मिस्टर पहेलीराम का असली नाम कुछ और है। उनके पहेलियाँ पूछने और बूझने के शौक़ ने उनका यह अजीब-सा नाम पैदा कर दिया। कम-से-कम पच्चीस दोस्त और सहेलियाँ हैं उनकी। इन ख़ास दोस्तों के अलावा मिस्टर पहेलीराम के घर के दरवाज़े उन सभी के लिए हमेशा ख़ुले रहते हैं जो पढ़ाई में या क्विज़ की तैयारी में उनकी मदद चाहते हों। बच्चो, अगर आप भी मिस्टर पहेलीराम का दोस्त या सहेली बनना चाहते हों, उनकी मदद चाहते हों, या उन्हें चैलेंज करना चाहते हों, तो इस कहानी को ध्यान से पढ़िए और अंदाज़ लगाइए कि मिस्टर पहेलीराम कितने साल के हैं, वे लड़का हैं या लड़की, और उनका असली नाम क्या है!

वैसे, मिस्टर पहेलीराम के बारे में एक बात बताएँ आपको? उनका दिमाग़ भले ही स्विस चाकू से भी ज़्यादा तेज़ हो, लेकिन व्यवहार ताज़े केक जैसा कोमल, मृदु, और मनभावन है। अभी कुछ ही दिन पहले की बात है। प्रज्ञा उनके पास गई और बोली, "मैं बहुत परेशान हूँ – मैं स्कूल में क्विज़ की टीम में शामिल हूँ ... "

"तो इसमें परेशान होने की क्या बात है? हमारे स्कूल में भी क्विज़ बड़े उत्साह से होती है। दस साल तक की उम्र के बच्चों का एक ग्रुप बनता है, बारह से चौदह साल के बच्चों का दूसरा ग्रुप, और चौदह साल से बड़े बच्चों का तीसरा, यानी सीनियर ग्रुप।"

"लेकिन तुमने तो पिछले साल क्विज़ में भाग नहीं लिया?"

"हाँ! मेरे लायक़ कोई ग्रुप था कहाँ? ख़ैर, प्रज्ञा, तुम अपनी प्रॉब्लेम बताओ। तैयारी तो पूरी है न?"

"टेढ़े-मेढ़े सवालों का जवाब खोजने में परेशानी हो रही है," प्रज्ञा बोली।

"टेढ़े-मेढ़े सवाल... जैसे?"

"जैसे, वह कौन-सा देश है जिसके नाम का पक्षी भोजन-सामग्री है?"

मिस्टर पहेलीराम ने बालों में उँगलियाँ फिराईं, छत के कोने को थोड़ी देर देखा, और कहा, "टर्की! टर्की देश का भी नाम है और चिड़िया का भी। है न?"

सपना ये बातें सुन रही थी। बोल पड़ी, "अच्छा, तो यह बताओ कि भारत से जितनी दूर उत्तर-पश्चिम पर टर्की है, क़रीब उतनी ही दूर, उल्टी तरफ़, यानी दक्षिण-पूर्व की ओर, कौन-सा देश है? किसी भी देश का नाम न ले लेना! उस देश का नाम बताना जो 2000 के बाद जन्मा हो।"

मिस्टर पहेलीराम की तलवार की धार जैसी तेज़ बुद्धि के लिए यह सवाल गाजर-मूली जैसा साबित हुआ। जवाब झट हाज़िर था उनका, "ईस्ट तैमूर, 2002 की मई में पैदा हुआ।"

 

रविवार का दिन, ग्यारह बज कर पच्चीस मिनट का समय। सभी बच्चे मिस्टर पहेलीराम के साथ टीवी पर अपना प्यारा बच्चों का कार्यक्रम देख रहे थे। तभी अभिषेक ने ताली बजाई। बाक़ी बच्चे समझ नहीं पाए, पर हर्ष बोल उठा, "एक बहादुर ऐसा वीर, गाना गा कर मारे तीर!"

ऐमन ने कहा, "न तो ये बहादुर है, न गाना गा रहा है, और तीर तो कोई चला ही नहीं ... "

अश्विनी बोला, "यह अक़्ल का डिपार्टमेंट है, पहेलीवाला। तुम लड़कियों के बस की बात नहीं यह!"

आस्था ने अक़्ल भिड़ाई, "... गाना गा कर मारे तीर? ... रेडियो!"

"बिलकुल ग़लत!" हर्ष के गर्व और आनंद की सीमा न थी।

"बुल... डोज़र," प्रिया ने अटकते हुए कहा।

"देखा, लड़कियों के लिए पहेलियाँ बस पहेलियाँ रहेंगी। उन्हें तो सिर्फ़ गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह रचाना चाहिए!" अश्विनी ने घोषणा की, हालाँकि सही जवाब शायद उसे भी मालूम नहीं था।

"ये बात बिलकुल ग़लत है कि लड़कियाँ पहेलियाँ हल नहीं कर सकतीं। एक बार रुचि पैदा हो जाए तो पहेलियाँ चुटकियों में हल हो जाती हैं। पहेलियाँ हल करने से दिमाग़ तेज़ होता है, ज्ञान बढ़ता है, और एनालिसिस करने की ताक़त तो इतनी ज़्यादा हो जाती है कि आगे चल कर बड़ी-से-बड़ी समस्या का हल निकल आए," मिस्टर पहेलीराम ने अपने कॉलर की बाईं ओर लगे बटन से खेलते-खेलते एक छोटा-मोटा भाषण ही दे डाला।

अभिषेक बोला, "भाषण तो इतना लम्बा सुन लिया। पहेली का जवाब नहीं मिला लेकिन अब तक!"

"आपकी पहेली का जवाब है, मच्छर!"

"अरे हाँ! मच्छर ही गाना गाते हुए, यानी "गूँ-गूँ" करते हुए काटता है। एक बहादुर ऐसा वीर, गाना गा कर मारे तीर – वाह, क्या बात है!" नितिन बोला।

"अच्छा! यह क्या है, बूझो तो जानें - टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ, बीच में खाई!"

"यह कान है मेरे भाई, लेकिन ये पहेली तुमने कहाँ से चुराई?" रम्या हँसते हुए बोली।

अपनी दो पहेलियाँ इतनी आसानी से बूझी जाती देख लड़के थोड़ा खीझ गए थे। शायद इसी खीझ का नतीजा था, कि अमित पूछ बैठा, "वह कौन-सा महीना है जिसमें लड़कियाँ सबसे कम बोलती हैं?"

"क्या... क्या...?" निधि का मुँह ख़ुला रह गया।

"वह कौन-सा महीना है जिसमें लड़कियाँ सबसे कम बोलती हैं?" – अमित ने हर शब्द पर ज़ोर देकर कहा।

दीपशिखा बोली, "मैं तो हमेशा-ही कम बोलती हूँ, पर सबसे कम कब बोलती हूँ..." वह सर खुजलाने लगी।

सचिन दीपशिखा के क़रीब बैठा था। जल्दी से खिसक गया – "आप कम बोलें या ज़्यादा, पर हाथी जितनी विशाल अपनी जुओं को न जगाएँ। उन्हें अपने दिमाग़ की ही तरह सोने दें!"

"अरे चुप! लड़कियाँ ही नहीं, लड़के भी एक महीने में सबसे कम बोलते हैं, क्योंकि उस महीने में दिन ही सबसे कम होते हैं।" 

"और वो महीना होता है फ़ेब्रुअरी का!" अनुश्री ने दीपशिखा के मुँह की बात छीन ली।

"हाँ! फ़ेब्रुअरी के महीने में सबसे कम दिन होते हैं; इसलिए उस महीने में हम सबसे कम दिन बोलते हैं। लेकिन, बोलते-बोलते हम कभी-कभी बहुत बड़ी बातें भी बोल जाते हैं। जैसे, देखो न, ’चीविंग गम चबाई, बिल चुकाया, हिसाब नदारद!’ – ये शब्द हैं तो सीधे-सादे, पर इनमें एक ग्रंथ का नाम छुपा है।" रवि बोला।

"चीविंग गम खाई, बिल चुकाया... क्या है पहेली, ज़रा फिर से तो कहना," आदर्श ने अनुरोध किया।

"ठीक है, लेकिन सिर्फ़ एक बार और बताऊँगा। चीविंग गम चबाई, बिल चुकाया, हिसाब नदारद।" रवि ने कहा।

"बाईबल!" अभिनव ख़ुशी से उछल पड़ा। "अच्छा! अदिति, इस पहेली में उस चीज़ का नाम है जिसका इस्तेमाल लड़कियाँ या औरतें ज़्यादा करती हैं। वैसे, एक बात अजीब है। तुम्हें उस चीज़ का इस्तेमाल जब भी करना होता है, तुम उसे दे देती हो।"

"मुझे जब भी उस चीज़ का इस्तेमाल करना होता है, मैं उसे दे देती हूँ? मैं क्यों दूँ? इतनी दानवीर मैं नहीं!"

"पहेली तो सुन लो पहले! ’मैं गई थी वह लेने, वह दे रही थी। अगर वह नहीं देती, तो मैं ले आती।'"

"जब वह दे रही थी, तो ली नहीं; और अगर वह नहीं देती तो ले आती! ये तो सरासर डकैती हुई!" मयंक ने राय ज़ाहिर की।

"ये डकैती नहीं है। ये है आपका अदना-सा झाड़ू! झाड़ू ही वह चीज़ है जिसके इस्तेमाल को झाड़ू बुहारना या झाड़ू देना कहते हैं। अब, जब कोई झाड़ू दे रहा है, यानी उसका इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे लेना ठीक नहीं। इसीलिए, अगर वह झाड़ू का इस्तेमाल नहीं कर रही होती, या झाड़ू न दे रही होती, तो उसे लेना ठीक होता।" मिस्टर पहेलीराम ने समस्या-समाधान किया ही था कि उनकी मम्मी कमरे में आईं – "अनुपम, आशीष, स्मृति! तुम तीनों भाई-बहन प्रोग्राम ख़त्म होते ही तैयार हो जाना। बुआ के घर जाना है।"

मम्मी के वापस जाते ही अनुपम ने पूछा, "अच्छा! एक बैट और एक बॉल का दाम है इक्कीस रुपए। बैट बॉल से बीस रुपए मँहगा है। बैट का दाम क्या है, और बॉल का दाम क्या है?"

"बैट है बीस रुपयों का और बॉल एक रुपए की," सोनम झट से बोली।    

"नहीं! उस हालत में बैट बॉल से बीस रुपए नहीं, उन्नीस रुपए मँहगा होगा!" गौरव ने अपने चश्मे को उँगली से ऊपर किया और बोला, “दोनों दामों में फ़र्क बीस रुपया और जोड़ इक्कीस रुपया। तो एलजेब्रा के इक्वेशन से दो बैटों का दाम इकतालीस रुपया और दो गेंदों का दाम एक रुपया हुआ। यानी बैट बीस रुपए पचास पैसे का और बॉल सिर्फ़ पचास पैसे की।"

आभा बड़ी देर से चुपचाप कभी प्रोग्राम देख रही थी तो कभी बच्चों की बातें सुन रही थी। अब उससे रहा न गया। बोल उठी, "अभी अभिनव ने झाड़ू के बारे में पूछा था यह कह कर कि झाड़ू का इस्तेमाल लड़कियाँ और औरतें ज़्यादा करती हैं। अब तुम लोग इस पहेली का हल बताओ, इसका कनेक्शन लड़कों से ज़्यादा है। पहेली है - कीड़ा है या है यह खेल, ये तो आप ही जानें; लेकिन इसके पीछे होते हैं सब लोग दीवाने"

"हेलिकॉप्टर!" अनिल की आवाज़ गूँजी।

"वाह, वाह! आपकी अक़्ल भी हेलीकॉप्टर में बैठ कर कहीं उड़ गई! हेलिकॉप्टर कौन-सा खेल है भला?"

"हाँ, ये बात तो है! कीड़ा भी है, खेल भी है, और सब उसके पीछे दीवाने हैं – ऐसा कौन-सा कीड़ा है?" अनुपम सोचने लगा। 

प्रोग्राम समाप्ति पर था। स्टूडियो में आए बच्चे अपना परिचय दे रहे थे, शौक़ बता रहे थे। एक बच्चे का शौक़ था क्रिकेट खेलना। बस, पहेली ख़ुद-ब-ख़ुद हल हो गई। सभी बच्चे बोल उठे – "अरे हाँ! क्रिकेट झींगुर को कहते हैं और लोग तो इस खेल के पीछे पागल हैं ही। वाह, आभा, वाह! बड़ी अच्छी पहेली है तुम्हारी!"

बच्चो! आभा को वाहवाही तो मिल गई, पर आपको वाहवाही तब मिलेगी जब आप इस कहानी की शुरुआत में पूछे गए तीनों सवालों का जवाब हमारे सही जवाब से मिलाएँगे। पहला सवाल था, मिस्टर पहेलीराम की उम्र क्या है। अगर आपने कहानी ध्यान से पढ़ी हो, तो याद होगा कि पिछले साल मिस्टर पहेलीराम की उम्र का कोई ग्रुप नहीं था स्कूल की क्विज़ टीम में। दस साल तक, बारह से चौदह साल तक, और चौदह साल से बड़े बच्चों का ग्रुप स्कूल में था। यानी, ग्यारह साल के बच्चों का कोई ग्रुप नहीं था। मतलब, पिछले साल मिस्टर पहेलीराम की उम्र थी ग्यारह साल, और इस साल उनकी उम्र है बारह साल! 

दूसरा सवाल था, मिस्टर पहेलीराम किसी लड़के का नाम है या लड़की का। मिस्टर पहेलीराम के कॉलर की बाईं ओर बटन यह बताता है कि वे एक लड़की हैं।

अंतिम सवाल था उनके नाम के बारे में। इसका जवाब तो उनकी मम्मी ने तब दे दिया जब उन्होंने अनुपम, आशीष और स्मृति, तीनों भाई-बहनों को संबोधित किया। अनुपम और आशीष लड़कों के नाम हैं, जबकि मिस्टर पहेलीराम का असली नाम लड़की का होना चाहिए, यानी स्मृति होना चाहिए।

बच्चो, कैसी लगी ये थोड़ी लम्बी पहेली? पहेलियों से कतराएँ नहीं, उनका हल खोजें। जीवन की कोई भी समस्या फिर पहेली नहीं रहेगी आपके आगे!

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