मृत्यु (डॉ. रानी कुमारी)
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रानी कुमारी1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
इस दौर की मौत को
डिप्रेशन की भी मौत
कहा जा सकता है...
लोग अब
अपनी पूरी ज़िंदगी को
पुनः देख रहे हैं
सजीव रूप से..
अकेलापन, अवसाद, तनाव
भारी पड़ता है
पूरे जीवन पर...
हम भुक्तभोगी हैं
और इस समय को
बेहतर समझ पा रहे हैं..
हाँ! ज़िंदगी का एक कोना
ख़ाली रह जाता है
और वह कोना
सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है!
अन्दर ही अन्दर घुटना
अंगों का शिथिल पड़ जाना,
अपनी ही सिसकियों को
बंद कमरे में सुनना...
तगड़े अँधेरे में
गहरी नींद सोने का
मन करना बार-बार!
मन करता है
कि मर जाएँ...
नए-नए तरीक़े
सोचते खोजते रहते हैं..
ख़ाली घर में,
दीवारों से बात करते
पर वह बोलती कहाँ हैं
आवाज़ वापस लौट आती
अपने कानों में...
बस यही सोचते
कुछ उनमें से
कि मेरे परिवार पर
क्या गुज़रेगी
उनका कोई क़ुसूर नहीं
मेरी मृत्यु,
सब को अँधेरे में ले जाएगी!
कुछ ऐसा ना कर पाएँ
और
कुछ अपनों में लौट आएँ
एक लंबे वक़्त के बाद...
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