मुहब्बत का सबक़ पहला यही है
शायरी | ग़ज़ल राज़दान ’राज़’1 Dec 2020 (अंक: 170, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मुहब्बत का सबक़ पहला यही है
कि मर मर कर ही जीना ज़िंदगी है
हमें समझा ले जितना अक़्ल चाहे
मगर जो दिल कहे करना वही है
किया है इश्क़ जिसने जानता है
कि ये इक आलम-ए-दीवानगी है
नए इस दौर में क्या दिल लगाएँ
कि अब दिल का लगाना दिल्लगी है
जिसे जान-ओ-जिगर समझा था हमने
क़रीब आया तो देखा अजनबी है
जो मिल सकता नहीं उस पे ही मरना
हमारे ‘राज़’ दिल की सादगी है
(संग्रह-राज़-ए-ग़ज़ल)
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