मुझे सपनों का आकाश चाहिए
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया17 Jun 2007
मेरे दिल की ज़मीन को
सपनों का आकाश चाहिए
उड़ सकूँ या नहीं किन्तु
पंखों के होने का अहसास चाहिए
मौसम दर मौसम
बीत रही है ज़िन्दगी
मेरी अनबुझी प्यास को
बस एक मधुमास चाहिए
लेकर तेरा हाथ, हाथों में
काट सकें बाकी ज़िन्दगी का सफ़र
मेरे डगमग करते क़दमों को
बस तेरा विश्वास चाहिए
साँझ होते ही तन्हा
उदास हो जाती है मेरी ज़िन्दगी
अब उन्हीं तन्हाँ रातों को
तेरे प्यार की बरसात चाहिए
कट चुका है अब
मेरा वनवास बहुत
मेरे वनवास को अब
अयोध्या का वास चाहिए
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