मुझे बस तू पसंद है
काव्य साहित्य | कविता सुधीर कुमार ’साहिल’1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
एहसासों को कहने से ज़्यादा
मुझे उन्हें लिखना पसंद है
इबादत ए ख़ुदा करने से ज़्यादा
मुझे दुआओं में रहना पसंद है
ख़्वाहिशें मेरी अब उसकी
मोहब्बत में नज़रबंद हैं
अब उस से हम क्या कहें
की हमें क्या क्या पसंद है
सीसीडी की कॉफ़ी से ज़्यादा
मुझे नुक्कड़ की चाय पसंद है
महँगे शहरों में घूमने से ज़्यादा
गलियों में तेरे संग बारिश में भीगना पसंद है
तेरी महँगी पायल की छनक से ज़्यादा
मुझे तेरी चूड़ियों की खनक पसंद है
तेरे गले में पहने नौलखा हार से ज़्यादा
मुझे तेरे काले धागे में पिरोया कमरबंद पसंद है
तेरे वन पीस महँगे गाउन से ज़्यादा
मुझे तू साड़ी के घूँघट में पसंद है
तुझे महँगी गाड़ी में
लॉन्ग ड्राइव पे ले जाने से ज़्यादा
तुझे आधी रात में बाइक पे
शहर घुमाना पसंद है
तेरी तारीफ़ करने से ज़्यादा
मुझे तुझे सताना पसंद है
और गर तू रूठ जाए सताने पे
तो मनाना और भी पसंद है
तेरे महँगे पार्टी मेकअप से ज़्यादा मुझे
तेरा सुबह आधी नींद में सोया मासूम चेहरा पसंद है
तेरे होठों की ग्लॉसी लिपस्टिक से ज़्यादा मुझे
तेरी आँखों का काजल पसंद है
तेरी ज़्यादा समझदारी से ज़्यादा
मुझे तेरी बेफ़िक्र बेबाकी पसंद है
तेरे आई लव यू कहने से ज़्यादा
तेरा नज़र झुक कर, शर्मा कर
मुस्कुरा देना पसंद है
रेस्तरां में डिनर डेट पे जाने से ज़्यादा
तेरे संग चाँद-तारे तले छत पे दारू पीना पसंद है
बिस्तर की सिलवटों में रात भर
तुझ में खो जाने से ज़्यादा
इश्क़ की चादर में तुझे लपेटकर
तेरे संग सो जाना पसंद है
कुछ बात हो या ना भी हो
तेरे संग कॉल पे रहना पसंद है
तेरी दिलकश बातों से ज़्यादा मुझे
तेरी ख़ामोश साँसों की आवाज़ पसंद है
तुझ से दूर हो कर करवटें बदलने से ज़्यादा
मुझे तेरी यादों में खोए रहना पसंद है
जुदाई के लम्हों में मुझे रोने से ज़्यादा
तुझ से मिलने के बचे लम्हे गिनना पसंद है
अब मैं और क्या कहूँ कि
मुझे क्या क्या पसंद है
जान है तू मेरी ए हमनफ़स
मुझे अब कोई और ना पसंद है
मुझे बस तू पसंद है
मुझे बस तू पसंद है
मुझे बस तू ही पसंद है
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