मुझको पास बुलाता है
काव्य साहित्य | कविता हेमेन्द्र जर्मा1 Jun 2007
मेरे अवचेतन मन में
हृदय भावों के अवसर पर
कोई नये गीत गाता है
मुझको पास बुलाता है
मोहपाश में बाँधे प्रफुल्ल सुमन
उसकी लय में मोहित ये मन
मैं सुन नहीं पाऊँ, महसूस करूँ
कुछ कह नहीं पाऊँ, पर आवाज़ दूँ
गुलाबों में मुस्कुराता है
मुझको पास बुलाता है
मेरे गीतों की लय पर
मन की वीणा साज छेड़े
भावुक हृदय गुनगुनाए
नैनों से उर्ध्वपातित बादल
अरमानों को उमड़ाता है
मुझको पास बुलाता है
वात्सल्य है जिसकी भूमिका में
भूमिका है जिसके भावों में
भावों की श्रुति का अनुवाद नहीं
निश्चल प्रेम है, सिर्फ़ अहसास नहीं
हर्षित हृदय यह गाता है
मुझको पास बुलाता है
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