न ज़मीं से है मेरी गुफ़्तगू न ही आसमाँ से कलाम है
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी15 May 2021 (अंक: 181, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
न ज़मीं से है मेरी गुफ़्तगू न ही आसमाँ से कलाम है
न ही फ़र्श मेरा नसीब है न ही अर्श मेरा मक़ाम है
न ही रास्तों की ख़बर मुझे न ही मंज़िलों का अता पता
न ही मेरा कोई है रहनुमा न ही कोई मेरा इमाम है
न ही कुरबतें1 न ही फ़ासले न विसाल-ओ-हिज्र2 के मसअले
न तलब कोई न ख़लिश कोई यही मेरी उम्र-ए-तमाम है
न वो जुस्तजु न वो आरज़ू न वो ख़्वाब हैं न वो ख़्वाहिशें
है अजब मक़ाम पे ज़िंदगी न सफ़र में हैं न क़याम3 है
वही लफ़्ज़ हैं वही दास्ताँ जो नया हो कुछ तो कहें नया
जो हुआ था कल हुआ आज भी वही सुबह थी वही शाम है
उसे गुफ़्तगू का हुनर नहीं मुझे इख़्तियार-ए-सुख़न4 नहीं
उसे एहतियात-कलाम5 है मुझे ख़ौफ़-ए-रब्त-ए-कलाम6 है
ये मुहब्बतों के मुज़ाहिरे7 ये इनायतें ये रिआयतें
वो है मेहरबाँ तो यूँ ही नहीं उसे मुझ से कोई तो काम है
यूँ ही दफ़अतन8 वो मिला तो क्या वही रस्म-ओ-राह की उलझने
न क़दम रुके न नज़र मिली न सलाम है न पयाम9 है
मेरा एक सीधा सा रास्ता न किसी से मुझको है वास्ता
कोई दोस्त हो या अदू10 कोई मेरा दूर से ही सलाम है
1. नज़दीकी; निकटता; बहुत निकट का संबंध 2. मिलन और जुदाई 3. अस्थायी निवास, ठहराव, बसेरा, ठहरना 4. बोल-चाल, काव्य पर अधिकार / की कला 5. बातचीत में सावधानी 7. मेल-जोल की बातचीत का डर 7. प्रदर्शन 8. अचानक 9. संदेश 10. शत्रु
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