न चाहा बेवफ़ा की याद में
शायरी | ग़ज़ल दिलबाग विर्क20 Mar 2015
न चाहा बेवफ़ा की याद में यूँ आँख तर करना
करे मजबूर दिल इतना कि पड़ता है मगर करना।
पुरानी बात छोड़ो, कुछ नया चाहे सदा दुनिया
रहे ताउम्र सबको याद, कुछ ऐसा नज़र करना।
यही सच है, यहाँ घर पत्थरों के, लोग भी पत्थर
हमारा फ़र्ज़ है हालात कुछ तो बेहतर करना।
किनारे की तमन्ना कश्तियों को किसलिए होगी
इधर से वे उधर जाती, मुक़द्दर है सफ़र करना।
मुहब्बत चीज़ कैसी है, न जीने दे, न मरने दे
सकूँ छीने, करे बेबस, इसे कहते असर करना।
बड़े गहरे दबे हैं 'विर्क' झूठी ज़िन्दगी के सच
तुझे मालूम हो जाएँ अगर सबको ख़बर करना।
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