नफ़रतों के बीज ही बो दूँ
काव्य साहित्य | कविता धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
अपनापन, मीठी सी बातें,
जिनकी चुभन उनके,
होठों से होकर सीधे
हृदय पर असर करती हैं।
उन्हें कैसे अपना कह दूँ?
सोचा! थोड़े नफ़रतों के बीज ही बो दूँ...
उनके मनगढ़ंत क़िस्सों से
परे नहीं हूँ। किन्तु...
अनजान बनना मुझे भी,
भली प्रकार से ज्ञात है।
मुझे विश्वास है स्वयं पर...
मेरे हृदय को आस रहती है,
सुकून की...
फिर भी सोचता हूँ,
थोड़ा नफ़रतों के बीज ही बो लूँ...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
नज़्म
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं