नहीं ज़रा ये अच्छे अंकल
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. जियाउर रहमान जाफरी15 Mar 2020 (अंक: 152, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
कर देते हैं घर को जंगल
नहीं ज़रा ये अच्छे अंकल
कभी अगर जो केले खाएँ
राह पे छिलके फेंकते जाएँ
नल से पानी अगर चलाते
खुले छोड़ कर वापस आते
ऑफ़िस में जब जाते अंकल
खैनी गुटखे खाते अंकल
थूक के घर को गंदा कर दें
काम कभी न अच्छा कर दें
खाने को ये जब भी आएँ
बिना हाथ ही धोये खाएँ
दिन में भी ये बल्ब जलाते
बलग़म फ़ेंकते आते - जाते
इनकी फ़ितरत तनिक न भाती
मैडम ये सब बुरी बताती
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