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नंदन वन में कोरोना 

एक बार की बात है, नंदन वन में एक ऐसी बीमारी फैल गई जिसका कोई इलाज न था। वन में बहुत सारे पशु पक्षी मारे गये। उसी जंगल में एक बड़ा हॉस्पिटल था जिसका नाम चम्पक चिकित्सालय था। वहाँ के डॉक्टरों ने जब बहुत खोजबीन की तो पता चला ये बीमारी पड़ोस के चिनचुन जंगल से आई है, जिसका नाम कोरोना है। ये बीमारी एक दूसरे के शरीर में आसानी से फैल जाती है और फिर उससे कितने ही लोगों में पहुँच  जाती है।

नंदन वन के राजा बड़े चतुर, प्रजा प्रेमी और दूरदर्शी थे। उन्होंने इस बीमारी के प्रकोप से रोकने के लिए प्रजा के हित में कई कठोर क़दम उठाये। उन्होंने दूसरे सभी जंगलों से आने वाले पशु पक्षियों पर पूरी तरह तरह प्रतिबंध लगा दिया। जंगल के सभी संदेहादपद पशु पक्षियों के  स्वास्थ्य की जाँच की गई। बीमारी को बढ़ता देख जंगल के राजा ने पूरे जंगल को लॉक-डाउन कर दिया, जिसमें ज़रूरत के अलावा जंगल में मटरगश्ती करने पर पूरी मनाही थी। ये अलग बात है कि कुछ जंगली कीड़े-मकोड़े इस आदेश के बावजूद बिना ज़रूरत घूमते-फिरते नज़र आ रहे थे।

उसी जंगल में एक बहुत पहुँचे हुए संत थे, जिनकी पूरे जंगल में प्रतापी बाबा के नाम से शोहरत थी। वो अक्सर शेर सिंह के इस ऐलान के बावजूद जंगल में फिरते रहते। उन्हें भालू, हिरण, हाथी सबने समझाया कि इस छूत की घातक बीमारी के प्रति तुम्हें लापरवाह नहीं रहनी चाहिए। ये सुनकर संत कहते.... "मैं इतना पहुँचा हुआ संत हूँ, दिन -रात भक्ति में लीन रहता हूँ.... मैं ईश्वर के निकट हूँ... उनके घर में रहता हूँ... एक छोटे से कीड़े की क्या मजाल जो मेरे शरीर में प्रवेश कर जाये..."बइस तरह वो किसी की बात नहीं मानता था।

एक दिन उन्हें बुख़ार आ गया..... साँस लेने में तक़लीफ़ हुई... पूरे शरीर में जकड़न होने लगी.. बदन का तापमान भी काफ़ी बढ़ गया था... उपचार के क्रम में पता चला उन्हें कोरोना हो गया है। कुछ दिनों में उनकी मृत्यु भी हो गई।

मौत के बाद जब वो ईश्वर के पास पहुँचे तो ईश्वर से शिकायत करते हुए बोले,"हे कृपानिधान, पूरा जंगल वहशी जानवरों से भरा पड़ा है... ऐसे में मैं तन्हा था जो तेरी इबादत करता था... और तू ही मुझे बचाने नहीं आया... यहाँ तक कि मेरी मृत्यु भी हो गई।"

सुनते ही भगवान ने कहा, "वत्स मैं तुम्हें बचाने आया था....। मैंने ही तुम्हें बुद्धि दी थी कि सही और ग़लत के निर्णय ले सको...। पूरे पशु-पक्षी जब घोसलों के अंदर थे तो तुमने अपनी अक़्ल का इस्तेमाल क्यों नहीं किया....। बुद्धि भी तो मेरी ही दी हुई थी....। जंगल के कई चतुर जानवर जो तुम्हें हिदायत दे रहे थे वो मेरे द्वारा भेजे गये थे ..। पर तुम हठधर्मी बने रहे.... इसलिए भुगतना भी तुम्हें ही पड़ेगा..।"

भगवान की ये बात सुनकर उस जंगल के संत के पास कोई जवाब नहीं था। उसने अपनी निगाहें नीची कर लीं थीं। 

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टिप्पणियाँ

Rajender Verma 2020/04/01 06:06 AM

बहुत सुंदर रहमान जी !

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