नरेन्द्र श्रीवास्तव - 3
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु नरेंद्र श्रीवास्तव20 Feb 2019
हाइकु - 3
बर्फ़ से दिन
पिघले पानी हुये
जला पलाश।
*
शीत जाते ही
धूप आँख दिखाये
लगे शेरनी।
*
शाम ने खोले
रात के दरवाज़े
घुसा अँधेरा।
*
शाम अकेली
खोल के एलबम
छुये उजाला।
*
पत्ते झरे तो
हिम्मत देने लगीं
नन्हीं कोपलें।
*
नभ निहारे
धरा को चकोर-सा
धरा चाँद-सी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अरुण कुमार प्रसाद हाइकु - 1
कविता - हाइकु | अरुण कुमार प्रसाद1. नयी व्याधियाँ। प्रतिशोध हिंसा का। …
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
कविता - हाइकु
बाल साहित्य कविता
- एक का पहाड़ा
- घोंसला प्रतियोगिता
- चंदा तुम प्यारे लगते
- चिड़िया और गिलहरी
- चूहा
- जग में नाम कमाओ
- टीचर जी
- डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल
- परीक्षा कोई भूत नहीं है
- पुत्र की जिज्ञासा
- फूल और तोता
- बारहामासी
- भालू जी की शाला
- मच्छर
- मुझ पर आई आफ़त
- ये मैंने रुपये जोड़े
- वंदना
- संकल्प
- स्वर की महिमा
- हरे-पीले पपीते
- हल निकलेगा कैसे
- ज़िद्दी बबलू
कविता
किशोर साहित्य आलेख
बाल साहित्य आलेख
अपनी बात
किशोर साहित्य लघुकथा
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}