नव वर्ष का आगमन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आशा मिश्रा ‘मुक्ता’15 Feb 2021
नव वर्ष का आगमन
देखा है मैंने उन बूढ़ी आँखों में
जो बैठा है दालान में पड़ी चारपाई पर
निहारता परिवार को
दीवार पर टँगे
ताम्बे के फ़्रेम में
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने
महानगर के चौराहे पर
उन नन्ही सी आँखों में
मैले कपड़ों से पोंछते
चमचमाती गाड़ियों को
कोशिश करता मापने की
बेबसी और उम्मीद
के बीच के अंतर को ।
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने
दहलीज़ पर खड़ी दुलहन की नज़रों में
इंतज़ार है जिसे उसका
जो गया वर्षों पहले
कमाने मुट्ठी भर दाने
लौटेगा वह
और विश्वास दिलाएगा
कि बस एक अफ़वाह थी
कि बसा लिया उसने
नया घर
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने
देवालय के द्वार पर बैठी
रुग्ण रक्तविहीन झुर्रियों की प्रार्थनाओं में
चिंतातुर उस पुत्र के लिए
जो त्यागकर उसे यहाँ
न जाने कहाँ खो गया।
नव वर्ष का आगमन देखा है मैंने
आलमारियों में ज़ब्त
उन अक्षरों में, गीतों में, ग़ज़लों में
तरसती एक आवाज़ को
कि मिलेगा कोई
जो उड़ाएगा धूल
और बाँधेगा उन्हें लफ़्ज़ों में
हाँ देखा है मैंने
नव वर्ष का आगमन
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