नया साल (अमिताभ वर्मा)
काव्य साहित्य | कविता अमिताभ वर्मा1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हमने कहा, नववर्ष मंगलमय हो!
वह चिढ़कर बोला, कितने भ्रष्ट हिन्दू हो!
अंग्रेज़ों का चोंचला हमें नहीं सुहाता है,
नया साल तो विक्रमी संवत पर आता है।
हम आगे बढ़े, तो एक मायूस शख़्स मिले
हमने पूछा, इस नए बरस में कैसे गिले?
वो नाराज़ग़ी से बोले, क़ाफ़िर हुए हो क्या?
हिजरी लगे तो चार महीना हुआ।
हमने हार नहीं मानी
मुस्कानें बाँटते रहने की ठानी
एक सज्जन को दी नए साल की बधाई
पर उन्होंने नानकशाही की याद दिलाई।
हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था
कोई नव बरस के और कोई नवरोज़ के गुण गा रहा था
समाज को ये क्या होता जा रहा था
कि हर चेहरा अलग नज़र आ रहा था।
भर्राती जा रही थी कबीर की वाणी
धुँधली हो रही थी महेन्द्र मुल्ला की क़ुर्बानी
भूलते जा रहे थे विक्रम साराभाई का ज्ञान
छुपाए फिर रहे थे अब्दुल हमीद का संग्राम
क्या निर्मल जीत की बहादुरी बेकार जाएगी
और मानेक शॉ की समझदारी हार जाएगी
ये किसकी करतूत है, ये किसका क़ुसूर है
ज़हर उगलता ये कैसा नासूर है?
मुझे परेशान देख एक बच्चा मेरे पास आया
उसने तोतली बोली में गाकर सुनाया
पलेछान मत हो, ये है लाजनीति का दंगल
हैप्पी न्यू ईयल, हैप्पी न्यू ईयल
तुतलाता है, पर उसे सब समझ में आता है
इतिहास भी तो यही दोहराता है
आज का बच्चा कल का देश बचाता है
उसे प्यार और नफ़रत में फ़र्क करना आता है
तो चलो, आज बच्चों से सीखें
ज़ुबाँ को छोड़ें, दिलों में देखें
तज दें ये हिंसा के तेवर
और कहें, हैप्पी न्यू ईयर!
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