नया सबेरा
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक24 Dec 2007
नये वर्ष का नया सबेरा।
जितना मेरा उतना तेरा॥
समय चक्र पूरा कर लेता।
नियत समय पर अपना फेरा॥
आता जाता है जीवन में।
कभी उजाला कभी अंधेरा॥
कोई भी पल नहीं रुका है।
हमने तो चाहा बहुतेरा॥
चुपके चुपके ले जायेगा।
हर बीता पल, समय मछेरा॥
हम ही नहीं समझ पाते हैं।
समय रहा है छिपा लुटेरा॥
आसमान में नये वर्ष में।
उसने सूरज नया उकेरा॥
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गीतिका
कविता
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