नया उत्कर्ष
काव्य साहित्य | कविता राजकुमार जैन राजन15 Sep 2019
मेरी आँखों में
उतर आया है एक चाँद
व्यस्तताओं के बावजूद
यादों के मौसम को तलाशते
जीवन की जगह जलन
और प्रगति की जगह
भटकन ढोता हुआ
ज़िंदगी देने की कोशिश में
इतने मिले ज़ख़्म कि
रिसते है घाव आज भी
अरसा बीत गया
संवेदनाएँ चुप हो गईं
अभिव्यक्ति भी मौन हो
बिखर गई
अपनापन सब खो गया
डरा-डरा सा अंतर्मन
सिहर उठता है बार- बार
बहुत दिनों बाद
मेरी जीजिविषा ने
मेरे उगते हुए सपनों के
अहसास को छुआ
मन के समंदर में
आशा की पतवार थामें
गंतव्य तक पहुँचने की चाह में
अपने अस्तित्व को खोजता
बढ़ चला
रिसते हुए घाव
मेरी तरफ़ देखकर मुस्कराए
संवेदनाएँ चेतन हो उठीं
सूख गया था जो दुःख का बिरवा
बहुत दिनों बाद
फिर हरियल होने लगा
हौसलों की सार्थक हवा
और मेहनत की दिशा पाकर
विश्वास बाँहें फैलाकर
स्वागत कर रहा
फिर नये उत्कर्ष का!
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