नई दिशा
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
"महाजन, यह छाता रख लो और मुझे सौ रुपए दे दो," एक आदिवासी अधेड़ ने गल्ले के व्यापारी अजय चौधरी से विनती की और लगभग नया एक छाता सामने रखी चौकी पर रख दिया।
बग़ल के गाँव के रामू की विवशता देख अजय चौधरी ने पूछा, "क्या हो गया रामू तुम छाता बंधक रखना चाहते हो, इस गर्मी में तुम किसान मज़दूर का छाते के बग़ैर कैसे काम चलेगा?"
"दवाई ख़रीदनी है महाजन, मेरे पास पैसे नहीं है, तीन महीने से कोई काम नहीं मिला है। पत्नी चार दिन से बीमार है," रामू ने जवाब दिया।
परदे की आड़ से अजय की पत्नी दोनों की बातें सुन रही थी। खाँसकर इशारे से पत्नी ने अजय चौधरी को भीतर बुलाया और कहा, "पिछले महीने आपने एक धर्मार्थ न्यास को दस हज़ार रुपए दान किये। आज एक दरिद्रनारायण ख़ुद चलकर आपके दरवाज़े पर आया है। आप सोचें आपको क्या करना है!"
पत्नी की बातों से अजय चौधरी को नई दिशा मिली।
"रामू, ये लो दो सौ रुपए और छाता भी अपने साथ ले जाओ। पत्नी का ठीक से इलाज करा लेना। जब हाथ में पैसे आ जायेंगे, वापस कर देना," अजय चौधरी ने रुपए और छाता देते हुए कहा।
रामू ने रुपए और छाता लेकर कहा, "महाजन अब तो जेठ बीतने चला। खेती बारी में मज़दूरी कर आपका पैसा ज़रूर लौटा दूँगा।" उनकी आँखों में कृतज्ञता झलक रही थी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
निर्मल कुमार दे 2021/06/17 05:18 PM
हार्दिक धन्यवाद और आभार।
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू की भूमिका
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
कविता
कविता - हाइकु
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
पाण्डेय सरिता 2021/06/21 10:40 PM
बहुत बढ़िया