नींव
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. हरि जोशी20 Feb 2019
बहुमंज़िला इमारत की दीवार नींव से उठ रही थी। ठेकेदार नया था। वह एक तगारी सीमेंट और पाँच तगारी रेत के मसाले से भयभीत सा ईंटों की जुड़ाई करवा रहा था। बारी-बारी से कई अभियंता आये। काम के प्रति सभी ने घोर असंतोष व्यक्त किया। कहा, "ऐसा काम करना हो तो कहीं और जाइये।"
अगले दिन नए ठेकेदार ने एक तगारी सीमेंट और तीन तगारी रेत के मसाले से सशंकित हो ईंटों की जुड़ाई की। बारी-बारी से पुनः कई यंत्री आये, सभी ने नींव की दीवार पर एक निगाह डाली और गर्म हो गए। इस बार ठेकेदार को अंतिम चेतावनी दी, "यदि कल तक काम में पर्याप्त सुधार नहीं किया गया तो काम बंद करवा दिया जायेगा।"
जब नए ठेकेदार के समझ में बात नहीं आई तो उसने एक अनुभवी ठेकेदार से इस समस्या पर अपनी प्रतिक्रिया चाही।
अनुभवी ठेकेदार भी हँसा और उसने भी घाघ अभियंताओं की तरह नए ठेकेदार को मूर्ख निरुपित किया किन्तु सुधार की एक तरक़ीब भी बताई।
अनुभवी ठेकेदार के निर्देशानुसार, नए ठेकेदार ने सभी अभियंताओं के निवास पर रात्रि के प्रथम प्रहर में कुछ भारी और कुछ ज़्यादा भारी लिफ़ाफ़े पहुँचा दिए। लिफ़ाफ़े यथायोग्य दिए गये थे।
आगामी दिन नए ठेकेदार ने एक तगारी सीमेंट और बीस तगारी रेत के मसाले से निश्चिन्त हो ईंटों की जुड़ाई की। बारी-बारी से सभी अभियंता निरीक्षण को आये। मसाले को सभी ने हाथों से रगड़ कर देखा और नए ठेकेदार की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
जाते जाते सभी ने एक ही टिप्पणी की, "अब आप सही तरीक़े से काम करना सीखे हो नींव ऐसे ही पुख़्ता होती है।"
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
यात्रा-संस्मरण
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अराजकता फैलाते हनुमानजी
- एक शर्त भी जीत न पाया
- कार्यालयों की गति
- छोटे बच्चे - भारी बस्ते
- निन्दा-स्तुति का मज़ा, भगवतभक्ति में कहाँ
- बजट का हलवा
- भारत में यौन क्रांति का सूत्रपात
- रंग बदलती टोपियाँ
- लेखक के परिचय का सवाल
- वे वोट क्यों नहीं देते?
- सिर पर उनकी, हमारी नज़र, हा-लातों पर
- हमारी पार्टी ही देश को बचायेगी
- होली और राजनीति
लघुकथा
कविता-मुक्तक
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं