नेह कभी मत बिसराना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुकृति घोष15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
बिसरा देना कटुताएँ तुम
मन की सारी कड़वाहट को
कहीं दूर पर दबे पाँव तुम
गहरे गड्ढे डाल के आना
तीखी तीखी यादों को बस
गुपचुप जाकर झुरमुट में तुम
नन्हीं तीली जला के आना
अहम् के लम्बे चौड़े दानव को
उलहानों के तिरस्कार से
दूर कहीं तुम भगा के आना
फिर तुम अपने सुन्दर मन के
कोने कोने को महकाना
इस कोने में प्यार को रखना
उस कोने पर मीठी यादें
इधर बीच में सहानुभूति
उधर पास में मीठी बातें
इस जगह पर मेरे अपने
उस जगह में मित्र रहेंगे
इन सबको सम्मान से रखना
नेह कभी मत बिसराना
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