नेत्रहीन
काव्य साहित्य | कविता लवनीत मिश्र19 Jan 2018
नयन नहीं फिर भी मैं देखूँ,
सुंदर सृष्टि सारी,
भेद नहीं मेरे मन में प्राणी,
क्या नर और क्या नारी,
रंग ना देखूँ रूप ना देखूँ,
भाव को में पहचानूँ,
कौन बुरा है, कौन भला है,
फ़र्क में इतना जानूँ,
राह में मेरे पग पग ठोकर,
फिर भी हार ना मानूँ,
गिर गिर उठूँ,पाने मंज़िल,
करूँ वही जो ठानूँ,
अंधकार है जीवन मेरा,
नहीं मुझे संताप,
सुन सुन नित नित,
घृणित कहानी,
मन में सबके पाप,
नयनों से ना देख सके,
जब हों ऐसे अपराध,
नेत्रहीन ही अच्छा मैं तो,
ना मन मैं कोई विषाद।
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shankar singh 2019/06/15 07:35 AM
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