न्यूटन जी!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता हरिहर झा1 May 2019
न्यूटन जी
बैठे
फ़रमाते,
काम के बराबर प्रतिरोध।
नियम तीसरा सच ही है तो
परिश्रम भला क्यों करना
पिछड़े रह कर भी जी लेंगे
ऐयाशी कर के मरना
प्रगति में झंझट है ज़्यादा
प्रतिक्रिया में सारा बोध।
भौतिकता बढ़ती पश्चिम में
उत्पादन ज़्यादा करते
प्रतिरोध में शिशु आत्माओं
से दुनिया को हम भरते
अरब खरब पहुँचे आबादी
कहाँ भला इसमें गतिरोध।
न्यूटन जी!
हमारे क़ानून
जब भी चाहा तोड़ दिया
हों लचीले, पकड़ कर इन्हे,
जब जी चाहा मोड़ दिया
अनुसंधान लाल फीते में,
भटक जाय राहों में शोध।
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Sapna 2019/05/05 12:08 AM
वाह क्या बात कही है सर ।