निडर ननकू
अनूदित साहित्य | अनूदित लोक कथा सरोजिनी पाण्डेय1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मूल कहानी: डाण्टलेस्स लिटल जॉन; चयन एवं पुनर्कथन: इटलो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन; पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
एक था नौजवान, नाम था ननकू, नाम ननकू क्यों था? क्योंकि वह बहुत छोटा और दुबला था, पर था बहुत निडर, डरना तो उसने सीखा ना था! निडर था, जवान था और दुनिया घूमने का शौक़ था।
घूमता-घामता एक दिन एक सराय के आगे जा खड़ा हुआ; रहने की जगह माँगी, जगह ख़ाली न थी, सराय वाले ने कहा, "अगर डरते ना हो और जान की परवाह ना हो तो एक महल बताऊँ, पैसे भी नहीं लगेंगे।"
ननकू ने कहा, "जब तक जीना है तब तक डरना कैसा!"
सराय वाले ने कहा, "सोच लो आज तक जो भी वहाँ सोने के लिए गया, ज़िंदा नहीं लौटा, अगले दिन सुबह अर्थी वाले जाते हैं, उसकी लाश लेकर आते हैं!"
निडर ननकू बोला, "जो डरता है वह मरता है, मुझको तो तुम एक मोटी रोटी और एक बोतल दूध दो, एक चिराग देकर रास्ता दिखला दो।"
और थोड़ी ही देर में ही ननकू पहुँच गया महल में।
आधी रात को ननकू को भूख लगी। वह खाने बैठा, तभी एक आवाज़ सुनाई दी, "अंदर फेंकूँ क्या?"
ननकू ने बेझिझक कहा, "फेंको।"
अरे बाप रे! खिड़की से एक कटा पैर आकर गिरा ननकू के आगे, ननकू ने रोटी काटी, एक घूँट दूध पिया।
"अंदर फेंकूँ क्या?"
"फेंको।"
और एक हाथ आकर ननकू के आगे गिरा, ननकू ने रोटी काटी, एक घूँट दूध पिया। ननकू जी दूध पीते रहे, रोटी काट-काट खाते रहे, हाथ, पैर और धड़ खिड़की से आकर अंदर गिरते रहे।
सबसे आख़िर में आया एक सिर और ननकू के आगे एक दैत्य खड़ा हो गया। अब तक ननकू का खाना भी ख़त्म हो गया।
दैत्य कहा, "मेरे साथ आओ।"
ननकू बोला, "तुम आगे राह दिखाओ।" थोड़ी देर तुम आगे – तुम आगे, होता रहा; अंत में दैत्य चला आगे, ननकू दीया लेकर पीछे।
सारा महल दोनों साथ-साथ घूमते रहे।
अंत में वे आकर खड़े हो गए एक दरवाज़े के आगे; दरवाज़ा बंद था। दैत्य ने कहा, "दरवाज़ा खोलो।"
ननकू ने कहा, "मैं तो छोटा दुबला, तुम खोलो।"
दैत्य ने कंधे के धक्के से दरवाज़ा खोल दिया। नीचे सीढ़ियाँ दिखाई दीं उतरती हुईं। दैत्य ने कहा, "ननकू नीचे उतरो।"
ननकू ने कहा, "मैं तो राह जानता नहीं तुम राह दिखाओ।"
थोड़ी देर झिक -झिक हुई। फिर दैत्य आगे और ननकू पीछे-पीछे सीढ़ी से उतरे नीचे। उतर कर एक तहखाने में पहुँचे। वहाँ एक बहुत बड़ा पत्थर का भारी पटरा रखा था।
दैत्य बोला, "पटरा हटाओ।"
ननकू बोला, "मैं तो छोटा-दुबला हूँ, तुम मोटे-तगड़े हो, तुम ही उठाओ !"
दैत्य ने बड़ी आसानी से पत्थर का पटरा उठा दिया। नीचे तीन घड़े दिखाई दिए, अशर्फ़ियों से भरे हुए।
दैत्यबोला, "इन्हें उठाकर बाहर ले चलो।"
ननकू फिर बोला, "मैं तो दुबला-पतला हूँ, तुम्हें ले चलो।"
दैत्य ने हँसते-हँसते तीनों घड़े एक साथ उठा लिए और ऊपर कमरे में ले आया।
जब वे ऊपर पहुँचे तो दैत्य ने कहा, "निडर ननकू! तुम्हारी बहादुरी से मेरा श्राप ख़त्म गया और मैं आज़ाद हो गया।"
तभी उसका एक पैर निकलकर खिड़की से बाहर उड़ गया।
"एक घड़ा तुम्हारे लिए है।"
दैत्य के ऐसा कहते ही उसका एक हाथ खिड़की से बाहर उड़ गया।
"दूसरा घड़ा उनके लिए है, जो कल तुम्हारी अर्थी उठाने आएँगे, यह सोच कर कि तुम मर गए हो।"
ऐसा कहते ही दैत्य का दूसरा हाथ खिड़की से बाहर उड़ गया।
"और तीसरा घड़ा उस पहले ग़रीब के लिए है जो महल के बाहर आएगा।"
यह कहते ही उस दैत्य का दूसरा पैर भी खिड़की से बाहर निकल गया। और दैत्य गिर पड़ा धरती पर धड़ाम से।
"यह महल तुम्हारा है।"
दैत्य का ऐसा बोलना था कि उसका धड़ भी खिड़की से बाहर उड़ गया।
"इस महल का राजा और उसका परिवार हमेशा के लिए इसे छोड़ कर चले गए हैं," ऐसा कहते ही दैत्य का सिर भी बाहर उड़ गया। कमरे में रह गया अकेला निडर ननकू!
सुबह होते ही महल के बाहर से 'राम-नाम सत्य है, राम-नाम सत्य है' की आवाज़ें सुनाई देने लगीं।
लोग अर्थी लेकर आ पहुँचे थे, निडर ननकू की लाश ले जाने के लिए।
लेकिन निडर ननकू तो खड़ा था।
सीना ताने, कमर पर हाथ धरे, मुस्कुराता हुआ।
अब निडर ननकू धनवान था,नौजवान था, रहने लगा महल में, करने लगा मजे,
अब ज़रा सुनो आगे क्या हुआ . . .
एक दिन खिड़की के आगे खड़ा होकर ननकू देख रहा था, उगता हुआ चमचमाता सूरज। तभी उसने पीछे मुड़कर देखा, पड़ रही थी उसकी परछाई बड़ी लंबी -सी (क्योंकि समय था सुबह का)। वह उसे देखकर घबरा गया, निडर नौजवान ननकू उसको देखकर बहुत अधिक डर गया और वह बेचारा तुरंत ही वहीं गिर कर मर गया . . .
कहानी हो गई ख़त्म और पैसा सारा हज़म!
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टिप्पणियाँ
Ranjana 2021/05/01 08:19 AM
Good story
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विजय नगरकर 2021/05/01 03:24 PM
निडरता मन में होती है,शरीर में नहीं।ननकू की कथा प्रेरणादायक है।बधाई