न्याय
काव्य साहित्य | कविता आदित्य तोमर ’ए डी’1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
न्याय नहीं हो
सकता वैयक्तिक,
न्याय होता है
हित,
न्याय को सार्वजनिक
रहने दो,
वैयक्तिक न्याय होता
है स्वार्थ,
स्वार्थ हितकारी नहीं
हो सकता।
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