ओ मसीहा
काव्य साहित्य | कविता निर्मल सिद्धू5 Mar 2012
रात भर का जला
थका हारा दिया
सूर्य की प्रतिक्षा में,
देखने लगा पूरब दिशा में,
इस लम्बे सफ़र से
टूट चुका हूँ मैं,
जितनी शक्ति थी मेरी
उतना जल चुका हूँ मैं,
बुझने को है
मेरी काया,
मिटने को है
मेरा अस्तित्व
मेरी छाया,
अब तो
चले आओ तुम
जीवन प्रकाश ज़रा
दे जाओ तुम,
बस यही एक सहारा है
इसीलिये
तुझे पुकारा है,
ओ प्रकाश के मसीहा
अब तो उदय हो जाओ!!
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