पानी का रंग
काव्य साहित्य | कविता भव्य गोयल15 Jun 2019
क्या ऋषियों का ध्यान कभी भंग नहीं होता,
क्या जो अलग हो जाए वह अंग नहीं होता,
क्या अकेलेपन का साथ कभी संग नहीं होता,
कौन कहता है फिर पानी में रंग नहीं होता,
प्रकृति ने बनाया हम सबको ही महान है,
पानी का रंग ना ही किसी के समान है,
क़तरे क़तरे को तरसता यह जहान है,
इसी रंग में बसती सबकी दिलोजान है,
बारिश का वह रंग जिससे दुनिया को प्यार है,
नदियों का रंग जिसका जगत करता दीदार है,
नैनो के अश्क का रंग जो कर देता इक़रार हैं,
हमारे तन-मन के भावों में जल ही तो सवार है,
यह रंग ना होता तो संसार कुछ नहीं होता,
कौन कहता है कि पानी में रंग नहीं होता।
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singh35012 2019/06/15 07:41 AM
shandaar rachna