पानी की क़िल्लत
काव्य साहित्य | कविता विजय कुमार15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
यहाँ पानी की क़िल्लत,
यहाँ पानी की क़िल्लत,
इन होठों पर है ,
उनकी मुरझी माया,
सूखे गले में अटके,
उनकी यह काया,
तरसी आँखों से वो,
सबको ताक रहे,
ख़ुद की ज़ुबां से,
बस मूक रहे,
कैसे हो रही उन आत्माओं की,
यहाँ हर तरफ ज़िल्लत,
यहाँ पानी की क़िल्लत,
यहाँ पानी की क़िल्लत।
इन लाखों डूबती निगाहों का,
सूर्य कौन होगा?
लोगों की अनदेखी से,
उनके पतन का दस्तूर होगा,
जल की बूँद बूँद पर,
उनकी बढ़ती प्यास है,
उन ख़ामोशियों के पीछे,
फिर भी उल्लास है,
बची-कुची ज़िंदगानी को,
वह रब से माँग रहे मन्नत,
यहाँ पानी की क़िल्लत,
यहाँ पानी की क़िल्लत।
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