पाठशाला से जब घर जाते बच्चे
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता अर्चना सिंह 'जया'30 Jan 2017
मेघ देख शोर मचाते बच्चे,
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
छप-छप पानी में कूद लगाते
कीचड़ में ख़ुद को डुबोते
रिम-झिम बारिश की बूँदों में
झूम-झूम कर हॅंसते गाते।
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
मोर पंख से रंग-बिरंगे
सपने इनके बाहर निकलते
कपड़ों की न चिंता करते
दौड़ भाग कर धूम मचाते।
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
पापा-मम्मी की एक न सुनते
हरदम अपने दिल की करते
तन मन अपना ख़ुशियों से भरते।
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
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