पाव आटा
कथा साहित्य | लघुकथा सुभाष चन्द्र लखेड़ा15 Feb 2021
चालीस वर्षीया जानकी पिछले दस वर्षों से अपने से आयु में दो वर्ष छोटी रुक्मा मैडम के घर खाना बनाया करती थी लेकिन कोरोना संकट की वज़ह से लागू लॉकडाउन के कारण 25 मार्च से उसका आना नहीं हुआ। एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रुक्मा मैडम के परिवार में वृद्ध ससुर के अलावा उनके पति और दो बच्चे, बारह वर्षीय बेटा अंशुल और आठ वर्षीया बेटी आरती हैं। बचपन से लेकर पिछले 24 मार्च तक किचन में सिर्फ़ चाय अथवा कुछ हल्का नाश्ता बनाने के लिए प्रवेश करने वाली रुक्मा मैडम को सबसे अधिक तकलीफ़ आटा गूँधने और रोटी बेलते वक़्त होती है। पति समीर डॉक्टर हैं और वे इन दिनों अस्पताल से सीधे किसी होटल में जाते हैं।
बहरहाल, आज रोटी बेलते वक़्त उनको जानकी की याद आ रही थी। वे मन ही मन सोच रही थी कितनी गोल और फूली रोटियाँ बनाती है जानकी?
उधर उसी वक़्त जानकी भी उनको याद कर रही थी। उसे अपने तीन बच्चों और पति के लिए रोटी बनानी थी लेकिन डिब्बे में सिर्फ पाव भर आटा था।
वह सोच रही थी, "रुक्मा मैडम कितनी ख़ुशनसीब हैं? उनके घर में आटे-चावल के डब्बे हमेशा भरे रहते हैं।"
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